आँखे भले हम मीच ले,
पर दिन तो न ढलता हैं।
सुबह-अख़बार-चाय और कहना,
सब ऐसे ही चलता हैं।
यह चक्र हैं दुनिया गोल हैं
सब वही पर आता हैं।
जो करता वो भी भरता हैं,
जो देखे वो भी चुकाता हैं।
सूरज को दीपक दिखाते,
और अंधियारी रात करते हैं।
हम कद में छोटे सही,
बड़े ख़यालात करते हैं।
कोई हो शहंशाह घर का,
हम डट कर मुलाकात करते हैं।
छोटा मुंह हैं,
मगर बड़ी बात करते हैं।
बुधवार, 30 अप्रैल 2014
हालात का तकाज़ा
किसी ने सहि कहा है मौका सबको मिलता है बारी सबकि आति है जब तालाब भरता है तो मछलिया चिटियो को खाति है और खाली होने पर चिँटिया मछलियो को ठिक कुछ वैसा अब दिग्गविजय जी के साथ होगा अहसास होना जरूरी है दर्द का वरना आजकल पेनकिलर भी नकली मिलते है :D #blog
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