बुधवार, 2 अप्रैल 2014

धर्म विरुद्ध

मैं बस में चढ़ा और खाली सीट पाकर बैठ गया। फेसबुक ऑन किया तो किसी क्रन्तिकारी मित्र ने डेढ़ गज़ लम्बी पोस्ट डाल रखी थी कि किस तरह दंगो में मुसलमानों ने हिंदुओ का कत्लेआम किया था? पूरी पोस्ट पढ़ते पढ़ते खून गरम हो गया और माथे पर पसीना छलक गया। आखिर हम हिन्दू कर क्या रहे हैं?
मोबाइल से नज़रे हटाई तो देखा की पास में एक छोटी बच्ची अपने छोटे भाई के साथ बैठी हैं। दोनों हँसते खेलते हुए बहुत प्यारे लग रहे थे । मैंने प्यार से लड़की के सर पर हाथ फिराया और उसका नाम पूछा। 'आतिफा' उसने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा। 'मुस्लिम' मैं स्तब्ध सा बैठ गया। शायद मैंने ध्यान नहीं दिया उनकी अम्मा पीछे की सिट पर जा बैठी थी। मैं कुछ देर तक उन मासूमो की अठखेलियो को निहारता रहा। फिर मेरे अन्दर के बालप्रेम को रहा नहीं गया तो मैंने धीरे से बच्चे के माथे पर एक चुम्बन दे दिया।
खिड़की से बाहर देखा की दूर क्षितिज पर आसमान धरती से मिल रहा था और मैं जानता हूँ आसमान का कोई अस्तित्व नहीं हैं।

"सच्ची घटना"

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