अभी कल ही की तो बात लगती है, जब
बेटा स्कूल जाता था और माँ रोज सुबह उसे
स्कूल छोडने जाती थी और शाम को वापस लेने
जाती... रास्ते मे बेटा कुल्फी खाने
कि जिद करता तो माँ थोडी देर ना करके उसे उसकि मनपंसद कुल्फी जरूर दिलवाती.
कभी बेटा बीमार पडा तो रात रात भर
जागकर सर पर हाथ रखकर देखती कि बुखार
कम हुआ कि नही.... दिनभर चाहे घर का काम करके कीतना भी थक
जाये पर रात को बेटे को कहानी सुनाकर
जरुर सुलाती.... चाहे खुद कभी गरम
खाना ना खाया हो पर बेटे को गरम
खाना खिलाने के बाद
ही खाना खाती.... चाहे जैसा हो, बेटे के कान के
पिछे काजल का काला टीका जरूर
लगाती की कही नजर ना लग जाये....सब्जीवाले से मोलभाव करके 2-4 रू. बचाती और उन रुपयो कि टाफी
लाती क्योकि उसे पता होता कि बेटा घर पर उन
टाफियो के इंतजार मे बैठा होगा .
हर दिन मंदिर मे बेटे कि लंबी उम्र के लिये
प्रार्थना करती.... दिपावली पर अपने
पिताजी को कहती कि मेरी साडी तो अभी नई
है आप एक काम किजिये अपने बेटे के लिये
पटाखे और मिठाई ले लेना... पूरा साल
रबर के चप्पल पहनकर भी अपने लाडले को स्कूल के अलग और घर के लिये अलग से जूते दिलवाती....
अभी कल ही कि तो बात लगती है पर आज तो उसका बेटा जवान हो गया हैं... उसे अपनी अनपढ़ माँ से
शर्म आती है....आज
माँ को साथ रखना अपमानजनक लगता है....
बीवी को uncomfortable फिल होता हैं... ....आज उसके पास टाईम नही कि बीमार माँ के
पास जाकर उसकी तबीयत पूछ ले...ऑफिस से फुर्सत नहीं मिलती...अब तो विदेश
चला गया हैं पत्नी बच्चो का विजा तो बन
गया हैं पर
माँ का नही बन पाता... कहा था मैं 2
साल के अंदर आकर आपको ले जाउगा.... माँ हर रोज
उसके फोन का इंतजार करती है पर नहीं कर सकता कॉल रेट महँगी हैं....
अभी कल ही कि तो बात है एक चीता जल
रही थी और लोग बातें कर रहै थे "कैसा बेटा है माँ कि चीता को आग देने भी नही आया?"
-हिमांशु वोरा
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