शनिवार, 26 जुलाई 2014

राजा का नाम

राजा का नाम एक बार की बात हैं एक जंगल था। उस जंगल में अनेक प्रकार के जानवर रहते थे लोमड़ी, हाथी, खरगोश इत्यादि। लेकिन उस जंगल में एक भी शेर नहीं था। एक दिन उस जंगल में एक शेर आया। शेर का नाम था- बब्बरसिंह। उसे पता चला की जंगल में और कोई शेर नहीं हैं। उसे एक लोमड़ी मिली। लोमड़ी ने कभी शेर नहीं देखा था तो लोमड़ी ने पुछा, तुम कौन हो? शेर ने कहा, मैं शेर हूँ और क्योंकि तुम्हारे जंगल में कोई भी और शेर नहीं हैं इसलिये आज से मैं इस जंगल का राजा हूँ। लोमड़ी बहुत खुश हुई कि चलो राजा मिल गया। लोमड़ी ने शेर से पुछा कि तुम्हारा नाम क्या हैं? शेर ने सोचा कि अगर गब्बरसिंह नाम बताया तो हो सकता हैं लोमड़ी डर जाए। शेर ने लोमड़ी की प्रवृति को देखते हुए कहा, मेरा नाम तेजसिंह हैं। लोमड़ी खुश होते हुए चली गई। लोमड़ी ने अपनी 'जात वालो' को बुलाया और कहा कि जंगल का नया राजा आया हैं और उसका नाम 'तेजसिंह' हैं। सभी लोमड़िया भी खुश हो गई कि चलो राजा मिल गया। अगले दिन शेर को हाथी मिला। उससे भी शेर ने जंगल का राजा होने की बात कही। जब हाथी ने नाम पूछा तो शेर ने हाथी की प्रवृति देखते हुए अपना नाम गजसिंह बताया। हाथी ने भी अपनी 'जात वालो' को बुलाया और कहा कि जंगल का नया राजा आया हैं और उसका नाम गजसिंह हैं। इस प्रकार शेर ने खरगोश, बन्दर, सांप सभी को अपना अलग-अलग नाम बताया और सभी ने वही नाम अपनी 'जातवालो' को राजा का बताया। एक दिन एक लोमड़ी को खरगोश मिला। लोमड़ी ने कहा तुम्हे पता हैं, जंगल का नया राजा तेजसिंह आया हैं? खरगोश ने कहा क्या बकवास कर रही हो? जंगल का राजा तो रफ़्तारसिंह हैं।और इसी बात पर दोनों झगड़ने लगे। जब हाथी ने उन्हें लड़ता देखा तो उसने पूछा क्या हुआ लड़ क्यों रहे हो? लोमड़ी ने कहा हाथी भाई मैं इससे कह रही हूँ कि जंगल का राजा तेजसिंह हैं तो ये कहता हैं कि जंगल का राजा रफ़्तारसिंह हैं। हाथी ने कहा तुम दोनों पागल तो नही हो गए हो? जंगल का राजा तो गजसिंह हैं। अब तीनो लड़ने लगे। धीरे-धीरे जंगल के सारे जानवर राजा के अलग-अलग नाम पर आपस में लड़ने लगे। लेकिन एक 'जात' के जानवर आपस में नहीं लड़ते थे क्योंकि उन्हे राजा का एक ही नाम बताया गया था। धीरे-धीरे यह बात शेर तक पहुंची तो उसने सभी जानवरों को एक साथ इकट्ठा किया और पूछा की तुम सब क्यों लड़ रहे हो? एक हाथी ने पूछा पहले ये बताओ कि तुम कौन हो? शेर को लगा अब असलियत बतानी ही पड़ेगी। उसने कहा मैं जंगल का राजा हूँ शेरसिंह। भालू ने कहा क्यों पागल बना रहे हो? जंगल का राजा तो मधुसिंह हैं। सभी जानवर चिल्लाने लगे। जंगल का राजा ये हैं, वो हैं। सभी 'जात वालो' के नेता चुप ही रहे। उन्होंने सोचा अगर इन्हें पता चल गया कि यही शेर जंगल का राजा हैं तो फिर हमारी बात कौन मानेगा? सब शेर की ही सुनेंगे। तभी एक बन्दर बोला ये शेर धोखेबाज हैं और हमारे जंगल का भी नहीं हैं। इसे यहाँ से बाहर निकालो। सभी जानवर सहमत हो गए और शेर को बाहर निकाल दिया। फिर हर 'जात' के नेता ने अपने राजा के नाम से एक मूर्ति बनाई और कहा की आपके राजा तक पहुँचने का यही एक मात्र रास्ता हैं। आज भी सारे 'जानवर' अपने-अपने राजा के नाम की मूर्ति की पूजा करते हैं। लेकिन जब भी किसी दूसरी 'जात' वाले से मिलते हैं तो राजा के नाम पर लड़ते-झगड़ते हैं। "एक 'जात वाले' कहते हैं हमारा राजा 'राम' हैं तो दूसरी 'जात वाले' कहते हैं हमारा राजा 'अल्लाह' हैं तो अन्य 'जात वाले' कहते हैं हमारा राजा 'इसा मसीह' हैं। जब भी कोई इन्हें समझाने की कोशिश करता है की राजा तो एक ही हैं तो उसे मुर्ख और दुसरी 'जात' की तरकदारी करने वाला (Secular) कहा जाता हैं।" सभी अपनी- अपनी मूर्तियों को पूजे जा रहे हैं।....और वो शेर आज भी जंगल के बाहर बैठा हुआ हैं और जो भी मिलता है उससे यही कहता हैं कि "मैं एक ही हूँ....मैं एक ही हूँ।" -Sumit K. Menaria

चयन

प्रेम सीमाएं नहीं जानता, जब भी होता हैं बे-हद होता हैं।सही और गलत के तथाकथित दायरों से परे होता हैं। जब तक रहता हैं इन कसौटियो पर नही समाता।  यह सामाजिक रुढियो, कूटनीतियों से दूर बहता हैं।   जब हमने भी किया तो बेइंतेहा किया। लेकिन हर पतंग की डोर धरती पर ही होती हैं। हम माने या न माने हमें रहना तो यही हैं। तुमने ही अपने घरवालो के खिलाफ न जाकर उनकी पसंद से शादी कर ली। मैंने भी चाहते न चाहते वही किया। क्या करता चारा भी नहीं था।  आज इतने वक़्त बाद जाकर सबकुछ सही हुआ हैं। एक हद तक तुम्हे भुला पाया हूँ, पत्नी को अपना पाया हूँ, एक साल  का बच्चा भी हैं, जो अभी सामने खेल रहा हैं। प्यार आज भी तुमसे उतना ही करता हूँ।
फ़ोन बज रहा हैं। Unknown no. हैं लेकिन जानता हूँ तुम ही हो। Answer/Reject बता रहा हैं। तुम ही बताओ किसे चुनु?

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

उत्तरप्रदेश राजनीती

गृहमंत्री चाहें तो उत्तर प्रदेश सरकार
की बखिया यह कह कर उघाड़ सकते हैं
क़ि चूँकि उप्र में सत्तारूढ़ दल
की लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हार हुई
है तो उसको विधानसभा में मिला जनादेश
भी बेमतलब है। राज्य सरकार को बर्खास्त
करने की नई मुहीम के लिए संविधान
खंगालने की जरुरत भी नहीं होगी, पूर्व में
१९७७ में जनता पार्टी की जीत के बाद
कई राज्यों की कांग्रेस सरकारें
तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह ने
यही कह कर बर्खास्त करने की नीति चल
दी थी।
# छोटा_मुंह_और_बड़ी_बात

भगवान की माया

अभी सावन चल रहा है !
बचपन से मतलब की जब से समझदार हुऐ
पिताजी की नकल करके सावन के उपवास
रखते थे. उस समय हम भक्ति नही सिर्फ
साबुदाना की खिचडी की खातिर ये सब
करते थे.समय के साथ साथ जब बडे तो शायद
भक्ति का मतलब भी जान गये पर सिर्फ
टीवी पर आने वाले धारावाहिक देखकर
जैसे, जय बजरंगबली,श्री गणेश,रामायण,श्र
ी कृष्णा,हर हर महादेव.
हम अपने फेवरेट भगवान महादेव को चुने
क्यूकी विश्वास था की वो बडे अच्छे है
पर गुस्साये गये तो भैया आप राख.फिर कुछ
दिन कुछ साल गुजरे समाझदार और
सयानेपन की घुट्टि पीकर शायद भूल गये
अपने फेवरेट भगवान को और सवाल उठे मन
की भगवान अगर सबका है तो क्यू
वो सिर्फ उनकी मदद करता है जो उन्हे
ढाई करोड का सोने का हाथ 50 लाख
का सिँहासन 100 करोड का मंदिर दान दे
सकता है फिर जब उस भगवान यह
दुनिया बनाई जिसने आपको और मुझे
बनाया जिसने मौसम धरती आकाश
बनाया भला वो क्यू इन सोने की धातुओ
और कागज के टुकडो मे बिक गया क्या उसे
नजर नहीँ आता की शायद
वो आदमी जो 2 दिन से दर्शन की लाईन
मे एक नारियल लेकर खडा है इस इंतजार मे
की कब अपनी छोटि सी मन्नत पूरी कर
पाये और एक आदमी हैलिकाप्टर से आता है
मर्सिडीज मे बैठता है वीआईपी गेट से अंदर
जाकर भगवान को एक करोड रूपये का चैक
चढाता है
इन दोनो मे भगवान भला क्यू अंतर
करता है. आप कहेगे भगवान नहीँ इंसान
करता है अंतर फिर भगवान क्यू
तमाशा देखता है । क्या उस आदमी के पास
एक करोड का चैक नही इसलिये ना ?
और यही बात हमको खटकी. बस यही बात
पर हम चल पडे नास्तिकता की राह पर
कहने लगे कहा का भगवान कौनसा भगवान
अबे कोई भगवान नही होता यहा
पर शायद जीवन को खुद से मतभेद रखने
का बडा चाव है ! अचानक एक के बाद एक
कुछ ऐसी घटनाये घटी की उस उम्र मे जब
बाकी सब लौँडे लडकिया ताडने बाईक
दौडाने मे रूची लेते हम फिर विश्वास
पैदा किये उस ईश्वर के प्रति माने उसे और
स्विकारे उसकी सत्ता और
प्रभुता को क्यूकी तब अपनी औकात
पता चली के आप इतने लायक या समझदार
नही के इंसान से भगवान बन जाये आप
इंसान है और आपकी जात इंसानियत है
जिसके गुण आप छोड नही सकते अब रात
को आपको प्रवचन दे दिये चलो आगे
अगली बार लिख कर बता देगेँ
आपको अभी आप जाकर इनबाक्स मे
जाकर ऐँजल प्रिया को रिप्लाई कर
दिजिये बेचारा उप्स बेचारी बैठी है
इंतजार मे

बलात्कार के मुद्दे पर सोते प्रतिनिधि

एक साहब विधानसभा मे रेप जैसे
संवेदनशील मुद्दे पर बहस के दौरान
अपनी वीआईपी कार मे किये गये सफर से
चढी भारी थकान उतारने के लिये अगर 10
मिनिट सो गये तो आप
सभी स्यापा मचाये हो अरे
वो भी आपकी तरह हि इंसान है जब आप
अपने 4 दोस्तो के बीच यह मुद्दा आने पर
बात पलट देते हो तब आपको याद
नही आता खैर कहे भी किसे जब कोई सूने
तब ना अब भला कौन चाहेगा अपने आप से
सवाल पूछना जब जवाब आप पहले से जानते
है जब प्रजा हि अंधी हो तो काहे काने
राजा मे कमीया खोजते हो
(बहस का मुद्दा न बनाये समझने वालि बात
है )

सोच बयां करते लाइक्स/कमेंट्स

1-2 दिन से इस पेज पर विभिन्न प्रकार
की पोस्ट्स की जा रही हैं। लाइक्स और
कमेंट्स भी हो रहे हैं। लेकिन इनमें एक ट्रेंड
देखने को मिला हैं। जब भी कोई
सामाजिक सरोकार वाली पोस्ट
होती हैं, जिसमें किसी सामाजिक बुराई
पर वार किया जाता हैं लोग ऐसे दूर भागते
हैं जैसे किसी को नंगा देख लिए हो।
लाइक कमेंट तो छोडिये व्यूज तक के लाले
पड़ जाते हैं। जैसे continue reading का बटन
दबाना भारी हो गया हो। इसी जगह जब
आपकी तारीफ़ में कोई पोस्ट
डाली जाती हैं लाइक्स और शेयर्स आने शुरू
हो जाते हैं।
बात लाइक्स की नहीं हैं, इस पेज
की भी नहीं हैं। हमारी हैं, हमारी सोच
की हैं। क्या हम केवल वही सुनना चाहते हैं
जो हमें अच्छा लगता हैं,
जो हमारी तारीफ़ में हो। फिर चाहे सच
हो या झूठ हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम
बस आत्ममुग्ध हो जाते हैं। वही सच से हम दूर
भागते हैं। जब हमें
आइना दिखाया जाता हैं हम
चेहरा छुपा लेते हैं। हम बदलाव तो चाहते हैं
लेकिन बदलना नहीं चाहते। सच
बोलना तो चाहते हैं लेकिन सच
सुनना नहीं चाहते हैं। क्या वास्तविक
जीवन में भी हम यही तो नहीं करते हैं?

भद्रजनो का खेल

पान गटकने के बाद इहाँ- उँहा पीक कर
सड़कों से छेड़छाड़ करते देसी भद्रजन
या भद्रजनों के खेल के मक्का कहे जाने वाले
लॉर्ड्स में पिच से छेड़छाड़ करते
फिरंगी भद्रजन .. दोनों में भले ही कुछ फर्क न
हो, लेकिन भारत लॉर्ड्स में खम्ब ठोंकने के पूरे
मूड में है !! #Cricket

कलंकित इतिहास के निर्माता

आज आप दुख जताईये और इंतजार किजिऐ
की कल कोई आपके लिऐ दुख जताये पर
फिर शिकायत मत करना की कुछ
किया काहे नाही सिर्फ दुख जता दिये
अरे भैया बीते कल मे एक को बस मे
मारा एक को तेजाब पिलाकर मारा एक
को पेड पर लटकाकर एक को खुलेआम
मारा बनिये उस कालिख भरे इतिहास के
भागीदार जहा आने
वालि पीढिया किसी भी हालात मे
बीते कल पर गर्व नही कर
पायेगी क्यूकी शायद हम उन्हे ना दे पायेगे
कोई ऐसा जो लडा हो गलत के खिलाफ
और मै भी उनमे शामिल आप भी दिजिऐ
पानी बबूल को और आशा किजिऐ
की एक दिन उस पर आम लगेगा।

दिल्ली की राजनीती

दिल्ली में सरकार बनाने, # लोकतंत्र के नाम
पर # शैतान_राजनीति ..!!
आम आदमी पार्टी पर पहले कांग्रेस ने डोरे
डाले तो भाजपा देखती रही और अब
भाजपा आँखें दिखा रही है तो कांग्रेस देख
रही है .. सब के सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे
हैं, किसी को शर्म तक महसूस नहीं होती ..
बहुत हुई सस्ती बेटिकट नौटंकी, अब
विधानसभा भंग करके जल्द महंगे चुनाव होने
ही चाहिए !!

पगडंडियो का जमाना

एक स्त्री नौकरी के सिलसिले में एक बड़े
आदमी के पास सच्चरित्रता का प्रमाणपत्र
लेने गयी थी। बड़े आदमी ने पहले उसे अपने
शयनकक्ष ले जाना चाहा और बाद में
सच्चरित्रता का प्रमाणपत्र देना चाहा।
पहले देवता आदमी बनकर ठगते थे, अब
आदमी देवता बनकर ठगते हैं।

# पगडंडियों_का_ज़माना <>
# हरीशंकर_परसाई

स्विस बैंक की हकीकत

स्विट्जरलैण्ड के ऊपर से गुजरते वक़्त
हेलीकॉप्टर से नीचे झांक रहे रजनीकांत
का पर्स जिस बिल्डिंग पर गिरा, वह आज
स्विस बैंक के नाम से पहचानी जाती है।
वहां रखे पैसे को काला धन कहा जाता है।
वैसे, जितना काला बताया जा रहा है,
रजनीकांत उतने भी काले नहीं। फिर इस धन
के काले होने क़ी इतनी हवा काहे उडी है।
बाबाजी का ठल्लू

शिव शिव शिव शिव शिव

शिव के राज में, शिव के माह में, शिव के
लिए जल
ला रहे शिव भक्त कावड़ियों पर, शिव के
नाम
पर, शिव क़ी पुलिस क़ी लाठियां .. समझ
नहीं आता, येन त्योहारों पर भीड़भाड़ भरे
धार्मिक स्थलों पर यह वीआईपी मूवमेंट
होता ही क्यों है ??
सन्दर्भ >> सावन के पहले सोमवार
को तो उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में
सपरिवार दर्शन को पहुंचे
मुख्यमंत्री क़ी सहूलियत के लिए
कावड़ियों पर
पुलिस ने खूब लाठियां भांजी। सात साल
के एक
बच्चे तक को नहीं छोड़ा गया। कोई
देखना चाहें, तो सहारा मध्यप्रदेश/
छत्तीसगढ़
के पास, अभी भी टेप सुरक्षित होगा ।।

शिवसेना की गुस्ताखी

एक पुरानी कहावत हैं कौए का बैठना और
डाल का टूटना। महाराष्ट्र सदन में
शिवसेना सांसदों ने ख़राब खाने के चलते एक
कैंटीन वाले को जबरदस्ती रोटी खिलाई।
लेकिन कैंटीन वाला एक रोजेदार मुस्लिम
निकला। यह मात्र एक संयोग
था या धर्मभ्रष्ट करने
की सोची समझी साजिश
वो तो पता नहीं लेकिन धर्म की आड़ में
बवाल करने शिवसेना मुश्किल में दिखती हैं।

#हरि_अनंत_हरि_कथा_अनन्ता

स्वार्थी सेनाएं

अभी हाल ही में फेसबुक पर एक पोस्ट
प्राप्त हुई. समाज से जुडी एक नयी ' सेना'
बनी थी जो भर्ती निकाल रही थी. उस
सेना में शामिल होने के लिए नंबर मांगे गए
थे और अनेक नवयुवक अपने नंबर कमेंट कर रहे
थे. मैंने नादानी से पुछ लिया कि "भैया ये
सेना आखिर करेगी क्या?" तो सारे
नवचयनित सैनिक टूट पड़े और अपने शब्द
भेदी बाण चलाने लगे.
जहाँ तक मेरा ज्ञान हैं भगवान राम
की वानर सेना थी जिन्होंने दुष्ट
राक्षसों का संहार किया था. भगवान
शिव के गण थे जो जी-जान से शिव
जी की रक्षा करते थे. महाराणा प्रताप
की सेना थी जिन्होंने मुगलों की ईट से ईट
बजा दी थी और वर्तमान में देश की सेना हैं
जो देश की रक्षा में जुटी हुई है. आखिर
आपकी सेना क्या करती हैं?
आप कहते हैं धर्म की रक्षा! लेकिन सबसे
ज्यादा धर्म की बारह तो आपने खुद
बजा रखी है. और आप अपने धर्म
की रक्षा करते कैसे हैं? दुसरे धर्म
को हानि पहुंचा कर ! जब अखबार में
आता हैं कि फला सेना के युवको ने
फला धर्म के युवक
को पिटा तो क्या इससे हमारे धर्म
का सम्मान बढ़ता होगा? नहीं इससे
तो केवल आपका अहम् तुष्ट होता है.
आपकी सेना का अन्य प्रयोग होता हैं
राजनितिक पार्टियों की महत्वकांशाओ
की खातिर रखे जाने वाले बंद के दौरान
दुकानों के शटर बंद करवाने और
लोगो को धमकाने के लिये. तब ये सेनिक
लट्ठ लेकर निकल जाते हैं और आमजनों के
सामने दादागिरी दिखाते है.
इसके आलावा आपकी सेना के ब्रांड नेम
का प्रयोग ट्राफिक सिग्नल और
पार्किंग लोंज में होता हैं जब इन
सैनिको से पार्किंग फीस या चालान
माँगा जाता हैं, तब ये बड़े गर्व से कहते हैं
'अबे तू जानता नहीं हैं मैं फला सेना से हूँ'.
अगर सामने वाला समझदार हो तो इन्हें
ससम्मान जाने देता हैं वरना फिर ये अपने
सेनापति को फोन लगाते हैं
जो किसी पुलिस अधिकारी को और
अंततः उस हवलदार को एक फोन आता हैं
और वो बेचारा हाथ जोड़कर इन्हें जाने
देता है.
इसके अलावा भी इस सेना का उपयोग
इसके चयनित सैनिको को कालेज में
एडमिशन, पास करवाने,
सरकारी नौकरी दिलाने इत्यादि हेतु
सेटिंग बिठाने हेतु किया जाता है.
मेरा प्रश्न ये हैं कि अगर इनके 'सैनिको'
को समाज या देश की सेवा ही करनी हैं
तो ये आर्मी क्यों नहीं ज्वाइन करते? जब
इन तथाकथित सेनाओ का समाज, देश और
धर्म के लिए कोई उपयोग हैं
ही नहीं तो क्यों ये हमारे धर्म और इश्वर
की आड़ लेते हैं?

कुटनीतिक समझ

कूटनीति समझ पाना हम आम आदमीयो के
बस का नही पर कुछ एक को लगता है
की यूएन मे वोट करने के पहले इंडिया के
राजदूतो ने कूटनीतिक सलाहकारो ने
नौकरशाहो ने और प्रधानमंत्री के विदेश
नीति सलाहकारो ने रक्षा सचिव, विदेश
मंत्री ने बातचीत नही की और वहा यूएन मे
जाकर बिना पूछे वोट कर दिया अरे कौन
समझाये की भैया वो वार्ड के चुनाव मे
वोट डालने नही गये थे यूएन मे गये थे
जहा हर काम सोच समझ कर
किया जाता है तो आपकी सोच जहा तक
पहुच ना पाये तो क्यू अपनी दिमाग फ्यूज
पडे 0 वाल्ट के बल्ब को जलाने का प्रयास
करते हो
p.s-नीजि रूप मे ना ले अपने अपने विचार
है

शनिवार, 5 जुलाई 2014

ईश्वर तक कैसे पहुंचे?

"धर्म ईश्वर तक पहुँचने का एक रास्ता हैं या यूँ
कहे ईश्वर के बहाने खुद को पहचानने
का ही रास्ता हैं । क्योंकि कहा गया हैं
कि आत्मा ही परमात्मा हैं। जब हम
परमात्मा तक पहुँचने के लिए धर्म के अनुसार
किसी विशेष विधि का प्रयोग करते हैं तो हम
आत्मा के ऊपर पड़े आवरणों को हटाते हैं।
लेकिन आजकल धर्म एक आडम्बर और पाखण्ड
मात्र रह गया हैं। धर्म का मूल उद्देश्य ख़त्म
हो चूका हैं, भगवान एक भय और धर्म एक चाबुक
बन के रह गया। यहाँ इस कड़ी में धर्म के
उसी रास्ते को बताने का प्रयास कर रहा हूँ।
अपेक्षा हैं पसंद आएगा।"
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योग पद्धति योग के उस क्रम का वर्णन
है जिस क्रम पर चल कर कोई भी साधक
परमात्माबोध या ईश्वर के साक्षात्कार के
लक्ष्य तक पहुँचता है. संस्कृत भाषा का शब्द
योग संस्कृत धातु " युज " से उत्पन्न हुआ है,
जिसका अर्थ है " निरोध ", " जुड़ना " , "
रोकना " , " एकत्व ". संस्कृत
भाषा की व्याकरण के अनुसार योग शब्द
का अर्थ दो सन्दर्भों में (दो प्रकार से )
लिया जाता है. जब इसका अर्थ करण के
अनुसार लिया जाता है तो इसका अर्थ
साधन, मार्ग, विधि निकलता है ; और
अधिकरण में अर्थ लेने पर इसका अर्थ लक्ष्य,
एकत्व, अंत, परिणाम, बोध निकलता है.
इसलिए योग को कुछ लोग साधन या मार्ग
कहते हैं और कुछ लोग लक्ष्य, एकत्व या बोध
कहते हैं. जब हम योग शब्द का अर्थ लक्ष्य
या बोध लेते हैं तो हम परमात्मा के बोध
(भगवन के साक्षात्कार) के अनुभव की बात
कर रहे होते हैं जिसका शब्दों में वर्णन
नहीं किया जा सकता. परन्तु जब हम योग
शब्द का अर्थ साधन, विधि, लेते हैं
तो इसका क्रमानुसार वर्णन
किया जा सकता है.
भारत के महान् ऋषि पतंजलि ने अपने
योगसूत्रों में योग
की परिभाषा "योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः"
बताई है, जिसका अर्थ है चित्त (मन)
की समस्त वृत्तियों का पूरी तरह रुक
जाना ही योग है. यह योग या चित्त
की वृत्तियों का सर्वथा रुक जाना एक क्रम
विशेष के अनुसार चलने पर शीघ्र ही सिद्ध
होता है, और वह क्रम है :- दीक्षा, श्रवण,
मनन, ध्यान और समाधि.
भारतीय ग्रंथों में अनेक प्रकार के
भक्तों,साधकों के लिए अनेक प्रकार के
मार्गों जैसे भक्तियोग, कर्मयोग,
ज्ञानयोग, राजयोग, हठयोग,
आदि का वर्णन किया गया है, परन्तु साधक
चाहे किसी भी मार्ग से चले उसे दीक्षा,
श्रवण, मनन, ध्यान एवं समाधि, इस क्रम पर
चलना ही पड़ता है.
इस कड़ी के भाग-
१. योग पद्धति : योग दीक्षा
१.१ योग पद्धति : समय संस्कार दीक्षा
१.२ योग पद्धति : भूत शुद्धि ( षडध्वशोधन )
२. योग पद्धति : श्रवण
३. योग पद्धति : मनन
४. योग पद्धति : ध्यान
४.१ योग पद्धति : ध्यान की विधियाँ
४.२ योग पद्धति : ध्यान में होने वाले अनुभव
भाग १ , भाग २ , भाग ३ , भाग ४
४.३ योग पद्धति : साधना के विघ्न और
उनके उपाय
५. योग पद्धति : समाधि
६.१ सपनों के अर्थ
६.२ साधना में विघ्नसूचक स्वप्न/दु:स्वप्न
(बुरे सपने)
६.३ साधना में विघ्नसूचक स्वप्न/
दु:स्वप्नों (बुरे सपनों) के उपाय
६.४ शुभ स्वप

हिमांशु का जन्मदिन

सुदिनं सुदिनं जन्मदिनम तव, भवतु मंगलम
जन्मदिनम।
विजयी भव सर्वत्र सर्वदा, भवतु मंगलम
जन्मदिनम ।।
प्रभु हिमांशु वोरा का इस धरा पर अवतरण कुछ
वर्षों पूर्व आज ही के शुभ दिन हुआ था। वक़्त
के साथ उन्हें आज "छोटा मुंह बड़ी बात" के
एडमिन के रूप में, हिंदी क़ी टाँगे तोड़ते हुए
अपना इंसानी धर्म बड़े जोशोखरोश से
निभाते हुए देखना, अपने आप में एक सुखद
अनुभूति है। यह भाईचारा सदैव कायम रहे,
इसी दिली कामना के संग समस्त "छोटा मुंह
बड़ी बात" परिवार की और से उन्हें जन्मदिन
पर हार्दिक शुभकामनाएँ !!

How to increase GDP

PM is concerned about increasing GDP of
the country.
PM has discovered the most easiest way
to increase GDP
that is, by increasing the price of ..
G = Gas
D = Diesel
P = Petrol
After FEEL GOOD now ACHCHHEY DIN...

राजनीति में सभ्य लोग

हमारी संसद बीती १३ मई को ६२ साल
की हो गई और १६ वीं लोकसभा में नई
सरकार है। देश की राजनीति में अच्छे,
ईमानदार, चरित्रवान, कर्मठ और जुझारू
लोगों के आए बिना देश का भला सम्भव
नहीं, सोचता हूँ राजनीति की कड़ाही में
ताल ठोकते हुये उतर ही जाऊँ। खुशी है
राजनीति में शामिल हो चुके
लोगों की स्वार्थपरता अब ऐसे मुकाम पर
पहुँच गयी है कि सभ्य लोग
भी राजनीति में दोबारा शामिल होने के
बारे में कभी-कभी सोचने लगे हैं। आज अगर
लोकतंत्र लड़खड़ाता दिख रहा है
तो यकीं मानिये सिस्टम नहीं हम असफल
हुए हैं।
जागो रे जिन जागणा जब जागण
की बार ..,
फिर क्या जागे नानका जब सोवे पाँव
पसार .. !!

एडमिन की पहचान

"इस पेज के एडमिन्स को कैसे पहचाने?"

इस पेज पर अधिकतर पोस्ट्स में एडमिन
अपना नाम नहीं लिखते हैं। लेकिन फिर
भी आप आसानी से पहचान सकते हैं
कि कौनसी पोस्ट किसने लिखी हैं?
-अगर किसी पोस्ट में सारी मात्राएँ
छोटी इ की हैं और बड़ी ई के साथ बैर
सा दीखता हैं। पूरी पोस्ट में कोमा और
फुल स्टॉप का नामो निशान तक नहीं हैं।
विषय वस्तु इतनी मासूम हो की आपके
दिल को छु जाये, तो समझ लीजिये
कि आप 'हिमांशु वोरा' की पोस्ट पढ़ रहे
हैं।
-अगर कोई पोस्ट धर्म
या राजनीती की 50 फीट गहराई में
जाकर लिखी गई, जिसको पढ़कर
आपको ऐसा लगे की आप कोई पहेली पढ़
रहे हैं, जिसमे अगर आंकड़े हो तो शुद्ध
हिंदी (१२३) में हो, कम से कम एक आध हैश
टैग हो, तो समझ लीजिये कि ये 'रजनीश
बरमैया' हैं।
-ये अमूमन महीने में एक बार ही पोस्ट करते
हैं, परन्तु किसी न किसी की टांग खींचते
ही नज़र आयेंगे, या किसी गंभीर विषय पर
कविता प्रस्तुत करेंगे, इनकी सीधी पहचान
ये हैं कि ये पोस्ट के अंत में दो हैश टैग के
बिच अपना नाम कैद कर लेंगे। ये 'अतुल
शुक्ला' हैं।
-पेज को येन-केन-प्रकारेण जीवित
रखना इनका उत्तरदायित्व हैं इसीलिए
अधिकतर पोस्ट चोरी की करते हैं। अंत में
(~) के साथ असली लेखक का नाम
भी लिख देते हैं। जब कभी खुद लिखेंगे
तो डेढ़ दो गज लम्बी ही लिखेंगे। पोस्ट के
अंत में हैश टैग में विषय वस्तु
डालना इनकी आदत हैं। ये 'सुमित
मेनारिया' हैं।