मोदी द्वारा उम्मीदवारी के हलफनामें में अपनी पत्नी का नाम भरने के बाद जैसे मिडिया जगत में भूचाल आ गया है. मोदी विरोधी पतीला भर भर कर गालियाँ दे रहे हैं जैसे किसी भयानक अजगर की दुम उनके हाथ में आ गयी हो. तो वही मोदी समर्थक साम-दाम-दंड-भेद से मोदी की रक्षा करने में जुट गए है और इस हेतु वो कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं.
मोदी विरोधी चिल्ला चिल्ला कर बोल रहे हैं जो व्यक्ति अपनी पत्नी तक का सम्मान न कर पाया हो वो देश की बाकी औरतो का क्या सम्मान करेगा? जैसे हम जानते ही नहीं हो की डीएनए टेस्ट के बाद पिता बनने वाले लोग भी इस देश में हैं, अपनी पत्नी की हत्या के आरोपी और पाकिस्तानी एजेंट से सम्बन्ध रखने वाले भी उनकी पसंदीदा पार्टी से चुनाव लड़ रहे है… और जब कुछ समय पहले मोदी की पत्नी स्वयं कह चुकी हैं कि मोदी ने उनका काफी ख्याल रखा और उन्हें पढने और अपना भविष्य सवारने की पूरी आज़ादी दी तो आप कौन होते हैं उन्हें महिला सम्मान का सर्टिफिकेट देने वाले? प्रश्न उठ रहा हैं मोदी ने उन्हें तलाक क्यूँ नहीं दिया? क्या तलाक लेने का अधिकार या कर्त्तव्य केवल पुरुषो का हैं? क्या मोदी की पत्नी चाहती तो स्वयं तलाक नहीं ले सकती थी ? अब उन्होंने तलाक क्यूँ नहीं लिया यह तो उनका निहायती निजी मामला हैं. इस आरोप प्रत्यारोप की जद्दोजहद में दो दिन पहले ही मोदी के भाई द्वारा दिया गया बयान भी पूरी तरह नकार दिया गया.
लेकिन मोदी के पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं वो भी ज्यादा काबिले तारीफ़ नहीं है. तर्कों के खोखलेपन की हद तो तब हो गयी जब भगवान राम और बुद्ध को भी इसमें घसीटा जाने लगा हैं कि उन्होंने भी तो अपनी पत्नी को छोड़ा था.
माफ़ कीजिये मोदी कोई अवतार नहीं हैं, और न ही उतने महान… लेकिन क्या कारण हैं कि इतने वक्त बाद और वो भी चुनाव से एन पहले उन्हें अपनी पत्नी का नाम जाहिर करना पड़ गया और क्या फर्क पड़ जाता अगर वे अविवाहित लिख देते?
एक गजब की हिम्मत चाहिए सच बताने के लिए और उतनी ही हिम्मत सच को सुनने के लिए… मोदी सच बोल चुके हैं लेकिन मुझे सच सुनने की हिम्मत कहीं नहीं दिख रही हैं.
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