सोमवार, 7 अप्रैल 2014

भेड़चाल

भेड़ो का झुण्ड चला जा रहा था. आगे सरदार और पीछे उसके पैरो को देखकर चलते चैले. यकायक सरदार रुक गया. पीछे मुड़ा और सभा वाली फोम में आकर चिल्लाया.
मेरे प्यारे भाइयो और बहनों…
जैसा की आप सब नहीं  देख सकते  हैं
पर आगे एक तरफ कुआ हैं  और  दूसरी तरफ खाई हैं…
बड़ी विकट  परिस्थिति हमारे सफ़र में  आई हैं…
अगर खाई में गिरे तो भी मरते  हैं
और कुए में गिरकर भी डूबते हैं…
तो हम बुखार में तपते सरदार…
आप  सभी के सुख दुःख के हकदार 
यह निर्णय  करते हैं की हम खाई में गिरेंगे
थोडा उड़ेंगे थोडा एन्जॉय करेंगे
और अपने हक़ की मौत मरेंगे…

सब से आगे खड़ा चेला उवाचा-

बट  सरदार  हम खाई में क्यों गिरेंगे
कुए  को एक बार एटेम्पट क्यूँ न करेंगे
पिछली बार गिरे थे न मरे थे न उड़े थे
पुरे दस साल बाद बाहर  निकले थे 
आप बार बार खाई में ही क्यूँ गिरते हो
आप कुए से इतना क्यूँ डरते हो?

सरदार गरजा… चैले  पर बरसा…

तुम मुर्ख हो अज्ञानी हो नासमझ हो,
चुनाव के वक्त डरे हुए असमंझस में   हो,
कुआ बहुत ही गहरा हैं,
पानी बहुत ही ठहरा हैं,
अन्दर गज़ब का कहर हैं,
कुए के अन्दर लहर हैं,
तुम लहर में डूब जाओगे,
भेड  धर्म भूल जाओगे,
तुम्हे कुछ समझ नहीं आता हैं,
सरदार सब सही बताता हैं.

सब भेड़ो  ने हाँ मैं सर  हिला दिया. लेकिन अगर वे   हिम्मत कर सर उठाये  तो उन्हें दिख जाएगा   कि  सरदार की आँखों पर धर्म की काली पट्टी बंधी हैं,  वो सबसे आगे होकर भी कुछ नहीं देख पा रहा हैं.   और यह भी दिख जाएगा कि आगे न तो कुआँ हैं न खाई हैं… न लहर हैं न कहर हैं… बस एक संकरा रास्ता हैं जिसे वे पार कर सकते हैं अगर वे एक एक कर आगे बढे. अगर वे सरदार के पैर देख कर  न  चले.

      

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