शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

भगवान की माया

अभी सावन चल रहा है !
बचपन से मतलब की जब से समझदार हुऐ
पिताजी की नकल करके सावन के उपवास
रखते थे. उस समय हम भक्ति नही सिर्फ
साबुदाना की खिचडी की खातिर ये सब
करते थे.समय के साथ साथ जब बडे तो शायद
भक्ति का मतलब भी जान गये पर सिर्फ
टीवी पर आने वाले धारावाहिक देखकर
जैसे, जय बजरंगबली,श्री गणेश,रामायण,श्र
ी कृष्णा,हर हर महादेव.
हम अपने फेवरेट भगवान महादेव को चुने
क्यूकी विश्वास था की वो बडे अच्छे है
पर गुस्साये गये तो भैया आप राख.फिर कुछ
दिन कुछ साल गुजरे समाझदार और
सयानेपन की घुट्टि पीकर शायद भूल गये
अपने फेवरेट भगवान को और सवाल उठे मन
की भगवान अगर सबका है तो क्यू
वो सिर्फ उनकी मदद करता है जो उन्हे
ढाई करोड का सोने का हाथ 50 लाख
का सिँहासन 100 करोड का मंदिर दान दे
सकता है फिर जब उस भगवान यह
दुनिया बनाई जिसने आपको और मुझे
बनाया जिसने मौसम धरती आकाश
बनाया भला वो क्यू इन सोने की धातुओ
और कागज के टुकडो मे बिक गया क्या उसे
नजर नहीँ आता की शायद
वो आदमी जो 2 दिन से दर्शन की लाईन
मे एक नारियल लेकर खडा है इस इंतजार मे
की कब अपनी छोटि सी मन्नत पूरी कर
पाये और एक आदमी हैलिकाप्टर से आता है
मर्सिडीज मे बैठता है वीआईपी गेट से अंदर
जाकर भगवान को एक करोड रूपये का चैक
चढाता है
इन दोनो मे भगवान भला क्यू अंतर
करता है. आप कहेगे भगवान नहीँ इंसान
करता है अंतर फिर भगवान क्यू
तमाशा देखता है । क्या उस आदमी के पास
एक करोड का चैक नही इसलिये ना ?
और यही बात हमको खटकी. बस यही बात
पर हम चल पडे नास्तिकता की राह पर
कहने लगे कहा का भगवान कौनसा भगवान
अबे कोई भगवान नही होता यहा
पर शायद जीवन को खुद से मतभेद रखने
का बडा चाव है ! अचानक एक के बाद एक
कुछ ऐसी घटनाये घटी की उस उम्र मे जब
बाकी सब लौँडे लडकिया ताडने बाईक
दौडाने मे रूची लेते हम फिर विश्वास
पैदा किये उस ईश्वर के प्रति माने उसे और
स्विकारे उसकी सत्ता और
प्रभुता को क्यूकी तब अपनी औकात
पता चली के आप इतने लायक या समझदार
नही के इंसान से भगवान बन जाये आप
इंसान है और आपकी जात इंसानियत है
जिसके गुण आप छोड नही सकते अब रात
को आपको प्रवचन दे दिये चलो आगे
अगली बार लिख कर बता देगेँ
आपको अभी आप जाकर इनबाक्स मे
जाकर ऐँजल प्रिया को रिप्लाई कर
दिजिये बेचारा उप्स बेचारी बैठी है
इंतजार मे

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