शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

सोच बयां करते लाइक्स/कमेंट्स

1-2 दिन से इस पेज पर विभिन्न प्रकार
की पोस्ट्स की जा रही हैं। लाइक्स और
कमेंट्स भी हो रहे हैं। लेकिन इनमें एक ट्रेंड
देखने को मिला हैं। जब भी कोई
सामाजिक सरोकार वाली पोस्ट
होती हैं, जिसमें किसी सामाजिक बुराई
पर वार किया जाता हैं लोग ऐसे दूर भागते
हैं जैसे किसी को नंगा देख लिए हो।
लाइक कमेंट तो छोडिये व्यूज तक के लाले
पड़ जाते हैं। जैसे continue reading का बटन
दबाना भारी हो गया हो। इसी जगह जब
आपकी तारीफ़ में कोई पोस्ट
डाली जाती हैं लाइक्स और शेयर्स आने शुरू
हो जाते हैं।
बात लाइक्स की नहीं हैं, इस पेज
की भी नहीं हैं। हमारी हैं, हमारी सोच
की हैं। क्या हम केवल वही सुनना चाहते हैं
जो हमें अच्छा लगता हैं,
जो हमारी तारीफ़ में हो। फिर चाहे सच
हो या झूठ हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। हम
बस आत्ममुग्ध हो जाते हैं। वही सच से हम दूर
भागते हैं। जब हमें
आइना दिखाया जाता हैं हम
चेहरा छुपा लेते हैं। हम बदलाव तो चाहते हैं
लेकिन बदलना नहीं चाहते। सच
बोलना तो चाहते हैं लेकिन सच
सुनना नहीं चाहते हैं। क्या वास्तविक
जीवन में भी हम यही तो नहीं करते हैं?

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