हमारी संसद बीती १३ मई को ६२ साल
की हो गई और १६ वीं लोकसभा में नई
सरकार है। देश की राजनीति में अच्छे,
ईमानदार, चरित्रवान, कर्मठ और जुझारू
लोगों के आए बिना देश का भला सम्भव
नहीं, सोचता हूँ राजनीति की कड़ाही में
ताल ठोकते हुये उतर ही जाऊँ। खुशी है
राजनीति में शामिल हो चुके
लोगों की स्वार्थपरता अब ऐसे मुकाम पर
पहुँच गयी है कि सभ्य लोग
भी राजनीति में दोबारा शामिल होने के
बारे में कभी-कभी सोचने लगे हैं। आज अगर
लोकतंत्र लड़खड़ाता दिख रहा है
तो यकीं मानिये सिस्टम नहीं हम असफल
हुए हैं।
जागो रे जिन जागणा जब जागण
की बार ..,
फिर क्या जागे नानका जब सोवे पाँव
पसार .. !!
आँखे भले हम मीच ले, पर दिन तो न ढलता हैं। सुबह-अख़बार-चाय और कहना, सब ऐसे ही चलता हैं। यह चक्र हैं दुनिया गोल हैं सब वही पर आता हैं। जो करता वो भी भरता हैं, जो देखे वो भी चुकाता हैं। सूरज को दीपक दिखाते, और अंधियारी रात करते हैं। हम कद में छोटे सही, बड़े ख़यालात करते हैं। कोई हो शहंशाह घर का, हम डट कर मुलाकात करते हैं। छोटा मुंह हैं, मगर बड़ी बात करते हैं।
शनिवार, 5 जुलाई 2014
राजनीति में सभ्य लोग
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