गुरुवार, 14 अगस्त 2014

काश हम गुलाम होते....

"काश! हम गुलाम होते...." कभी कभी मैं सोचता हूँ की हम आज़ाद क्यों हुए? काश हम गुलाम होते.... अधपके हिंगलिश ट्यूटर की जगह, असली अंग्रेज से अंग्रेजी सिखते.... लाठिया तो आज भी खाते हैं सच के लिए लड़ने पर, तब 'जय हिन्द' कह कर हंटर ही खाते.... पटरीयां-सड़के तो वो भी बीछा ही रहे थे, कम से कम पूरा एक रुपया तो पहुचाते... बिक चुका हैं हर चैनल हर अखबार, देशप्रेम की खातिर कुछ अखबार सच भी बताते... मस्ती से देते सारे पेपर अंग्रेजी में, अनुवादित हिंदी के झंझट से मुक्ति पाते... हिंदी के इस पेज की खातिर, गूगल इनपुट पर उँगलियाँ न गिसवाते... आज मेरे अपने ही बेच खा रहे हैं देश मेरा, गोरे-काले के भेद से ही, हम दुश्मन तो पहचान पाते.... वो मुर्ख थे जो लड़-मर गए, इस देश को आज़ाद कर गए... अंग्रेज बुरे रहे थे हम कौनसे अच्छे, दिल पर हाथ रखिये कौनसे सच्चे हैं, एक दिन का पर्व हैं, मना लीजिये, तिरंगे को प्रोफाइल पिक्चर बना लीजिये, सुबह कही घुमने चले जाइएगा, परिवार के संग पिकनिक मानियेगा, थोडी बहुत हो देशभक्ति तो टीवी चलाइए, उसपर कोई देशभक्ति की फिल्म लगाइए... कुछ बच्चो संग स्कूल जाइएगा, तालियाँ भिडिये, हौंसला बढ़ाइए, हो गया झंडा, मिल गयी छुट्टी, देशप्रेम की तस्सली झूठी... जाने किस खातिर वे फांसी पर झूल गए, वो देश आज़ाद कर गए पर ये भूल गए, केवल अंग्रेजो को भगाने से देश आबाद नहीं होता, देश नहीं बढता जब तक हर शख्स 'आज़ाद' नहीं होता.....

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