आपने चाहे C.A., M.B.A. कुछ भी किया हो, आप
अपने आप को तब अनपढ़ महसूस करते हैं जब
आपका कोई पडोसी डॉक्टर की पर्ची लेकर
आता हैं और पूछता हैं
कि "बेटा जरा बताना कौनसी दवा लिखी हैं?"
भगवान कसम खुद पर धिक्कार महसूस होता हैं।
आँखे भले हम मीच ले, पर दिन तो न ढलता हैं। सुबह-अख़बार-चाय और कहना, सब ऐसे ही चलता हैं। यह चक्र हैं दुनिया गोल हैं सब वही पर आता हैं। जो करता वो भी भरता हैं, जो देखे वो भी चुकाता हैं। सूरज को दीपक दिखाते, और अंधियारी रात करते हैं। हम कद में छोटे सही, बड़े ख़यालात करते हैं। कोई हो शहंशाह घर का, हम डट कर मुलाकात करते हैं। छोटा मुंह हैं, मगर बड़ी बात करते हैं।
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