रविवार, 3 अगस्त 2014

महाकाव्य का लघुविश्लेषण

सत्य मारा नहीं छला जाता हैं,
हाथी की आड़ में द्रोण मारा जाता हैं।
वो तो गुरु था, शिष्य से कैसे हारता भला,
पुत्र प्रेम में पिता गिरा जाता हैं।
व्यूह टूट भी जाता, अभिमन्यु न बचता,
पित्रो के भेष में जब अधर्म लड़ा जाता हैं।
वो युद्ध नहीं एक जुआ ही था,
पत्नी के केशो पर, जहाँ पुत्र वारा जाता हैं।
-Sumit K. Menaria

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें