शनिवार, 16 अगस्त 2014

श्री कृष्णा के बारे में भ्रम

इंडियन मायथोलोजी मे श्री कृष्णा का जो स्थान है। वो आपको बताता है। शक्ति और बुध्दि का प्रयोग कैसे किया जाये, अवतारो मे श्री राम एक आदर्श पुरूष ,बेटा, पति, भाई ,मित्र का उदाहरण है। पर श्री कृष्णा भी ठीक उसी तरह एक उदाहरण है एक अच्छे मित्र, सखा,भाई,पुत्र के. पर अंतर क्या है दोनो मे ? अंतर है जहा श्री राम आपको आदर्श बनना सिखाते है। वही श्री कृष्णा आपको समय के साथ परिर्वतन और कूटनीति बताते है। श्री कृष्णा को अधिकतर जनमानस गोपियो के साथ रास लीला रचाते या शरारत करते बच्चे के रूप मे जानता है । पर आप गौर कर के देखिऐ आप पायेँगे की वो एक बेहतरीन नीति निर्माणकर्ता और कूटनीति के पहले जानकार थे । अधर्म पर धर्म की विजय तो रामायण भी बताती है । पर कृष्ण लीला आपको बताती है की समय के साथ धर्म भी बदलता है ! और अधर्म भी बढता है तो आप को अपनी नीतिया बदलनी पडती है ! अगर सतयुगी प्रभु श्री राम त्रेतायुग मे उन्ही नीतियो के सहारे चलता तो क्या वो उन छलो को पहचान पाता ? क्या भीम जरासंध जैसे बलशाली को मार पाता? क्या लक्ष्यागृह से कोई बच पाता ? क्या अर्जुन कभी हिम्मत कर पाता अपनो के विरूद्ध युद्ध की ? दरसल कुछ नास्तिक सवाल खडा करते है अवतार पर पर वो भूल जाते है की चाहे वो अवतार ना थे चाहे वो भगवान ना थे चाहे सब कुछ काल्पनिक है पर फिर वो गलत के खिलाफ लडना तो सिखाते है । आप वैज्ञानिकता की बाते करते है । पर अगर कही गलत होता है तब आप चुपचाप सर झुका कर निकल लेते है । दरसल विषय आपकी नास्तिकता या आस्तिकता नहीँ. विषय है उन करोडो की उन भावनाओ को चोट पहुचाने का आप अंधविश्वास खत्म किजिऐ कोई दिक्कत नहीँ पर विश्वास पर प्रहार करने के आप अधिकारी नहीँ

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